देवता कार्तिक स्वामी शिव भगवान के पुत्र माने जाते हैं और इनके मनाली में तीन मुख्य स्थान मान जाते हैं एक हैं मनाली के नजदीक सिमसा, दूसरा है नथान, तीसरा है खखनालयह मनाली के कुछ मुख्य देवता में से एक हैं।
जनश्रुतियों के अनुसार कार्तिक स्वामी की कहानी।
एक बार सृष्टि नारायण जिनका सिमसा के ठीक सामने व्यास नदी के दूसरी तरफ में मंदिर है तथा देवता कार्तिक स्वामी के मध्य सिमसा में बसने के लिए विवाद हो गया दोनों देवताओं ने इस स्थान पर आश्रम स्थापित करने की ठान ली विवाद को बढ़ता देख कर शिवजी ने एक चाल चली उन्होंने कहा कि वह पासके सरौड नाले से आटा छानने वाली छनीनी में मंदिर स्थल तक पानी लाए दोनों में से जो एक भी बूंद गिर आए बिना वहां तक पानी पहुंचा आएगा उसे वह स्थान प्राप्त होगा इस शर्त से सृष्टि नारायण हार गए जबकि कार्तिक स्वामी अपने तपोबल से पानी लाने में सफल हुए अपमानित होकर सृष्टि नारायण गांव में बस गए परंतु अवसर पाकर एक बार उन्होंने कार्तिक स्वामी पर पत्थरों व शस्त्रों से आक्रमण किया कार्तिक स्वामी ने इनसे अपनी रक्षा तो की परंतु कोई प्रतिकार नहीं किया सृष्टि नारायण द्वारा बरसाए गए पत्थरों से बने गड्ढे आज भी मंदिर के पीछे की पहाड़ी पर देखे जा सकते हैं इनमें से एक विशाल पत्थर मंदिर के आगे धान के खेत में गिरा था कहते हैं कि एक बार इस गोल पत्थर को नीचे लुढ़का दिया गया था जो अगले प्रातः खुद ब खुद उस स्थान पर पहुंचा और पहले ही जैसी स्थिति में पाया गया सकी पूजा भी होती है आपस में विरोध के कारण यह दोनों देवता एक साथ यात्रा पर नहीं निकलते हैं और ना ही साथ बैठते हैं सृष्टि नारायण द्वारा प्रयोग किए गए शस्त्र आज भी यहां जिला रूप में विद्यमान हैं देवताओं में मतभेद इतना है कि जब कहीं लोग इन्हें बुलावे पर ले जाते हैं तो कहते हैं कि इनके रथ खुद खुद इधर उधर खिसक जाते है भगवान कार्तिक स्वामी का मुख्य मंदिर तो सिमसा में ही है परंतु इनका भंडार कन्याल गांव में है जो सिमसा से थोड़ी ऊपर की तरफ को है इनके भंडार में अनेक साजो सामान रखे जाते हैं कन्याल में किसी भी देवता के रथ नहीं ले जाएं जाते कहा जाता है कि यहां की जोगणिया बहुत शक्तिशाली है इसलिए यहां पर देव रथों का जाना लगभग निषेध ही है
कार्तिक स्वामी के त्योहार।
फाल्गुन मास में फागली और वैशाख में पंचमी की पूर्व संध्या को गांव कन्याल और छियाल के लोग मशालें लेकर देवता की सौह में एकत्र होते हैं इस अवसर पर गांव की महिलाएं विशेषकर ध्यायणिया (विवाहित बेटियां) देवता की चाकरी के लिए देव प्रांगण में उपवास रखती है पंचमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में यहां सोया ऑढी रा मसोला (गिरे हुए सात पेड़ों की सात लकड़ियों की मशाल) परंपरा का निर्वाहन होता है परंपरा अनुसार छियाल गांव इस परंपरा का प्रभारी होता है गांव के लोग रात के समय जंगल में जाकर गिरे हुए 7 पेड़ों से एक एक लकड़ी लाते हैं फिर इन सात लकड़ियों को पहले से तैयार लगभग 10 फुट लंबी और 1 मीटर व्यास की विशाल मशाल में मिला दिया जाता है अब इस मशाल को देवता कार्तिक स्वामी के छियाल स्थित मंदिर से गाजे बाजे के साथ सिमसा ले जाया जाता है उसे पहले से चल रहे जागरण में डाल दिया जाता है इस मशाल के दर्शन शुभ माने जाते हैं इसके बारे में कहावत है कि यह 7 व्रतों से भी अधिक फलदाई है
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