आज देश के हालात किसी से छुपे नहीं है। हर जगह त्राहि-त्राहि मची हुई है, कहीं कोरोनावायरस ने हाहाकार मचाया हुआ है और कहीं पर लोग भुखमरी से मर रहे हैं। कोरोनावायरस  से मरने वालों की संख्या तो हमें मालूम है परंतु भुखमरी और अन्य खतरनाक बीमारियों से मरने वाले लोगों का ब्यौरा किसी के पास उपलब्ध नहीं है एक सर्वे के अनुसार 8 करोड सर्जरी होना बेहद आवश्यक थी देश में। सोचिए जरा अगर इन लोगों की सर्जरी समय से नहीं हुई तो कितने लोगों की मृत्यु होना निश्चित है।
वर्तमान समय और केंद्रीय सत्ताधारी दल की महत्वाकांक्षा एवं राजनीति
वर्तमान समय और केंद्रीय सत्ताधारी दल की महत्वाकांक्षा एवं राजनीति
ऐसे में यह देखना बढ़ा आवश्यक है कि सरकार अपनी ओर से क्या प्रयत्न कर रही है, परंतु जब थोड़ी देखने की कोशिश की तो भारत के #संघीय ढांचे को एकात्मक बनाने की भरपूर कोशिश केंद्र सरकार द्वारा की जा रही है। जब कि यह देखा गया है की दुनिया के अन्य देशों में भी आज इस महामारी के दौर में अगर इस महामारी को काबू किया गया है तो वह संघीय ढांचे में ज्यादा परिपक्व तरीके से हुआ है। 
इसका एक ताजा उदाहरण  न्यूजीलैंड है जहां पर वहां का आखिरी कोरोनावायरस का मरीज अब ठीक हो चुका है। वहां पर न्यूजीलैंड की सरकार ने शक्तियों का विकेंद्रीकरण किया और हर तरह से छोटी से छोटी संस्था की मदद लेकर इस भयानक महामारी को काबू में किया।
बात की जाए भारत की तो यहां प्रधानमंत्री कार्यालय से सारी चीजें हैंडल करने की कोशिश की गई जिसका खामियाजा आज हम भुगत रहे हैं। अच्छा होता पहले ही भारत सरकार द्वारा राज्य की सरकारों से अच्छा तालमेल बनाया जाता और समय रहते इस महामारी को काबू किया जाता।
भारत के संदर्भ में सारी गलतियां तभी हो चुकी थी जब भारत #सरकार ने एकदम से बिना तैयारी के लॉक डाउन कर दिया। यह कुछ वैसा ही था जैसे नोट बंदी का फैसला लिया गया था। 
सरकार को चाहिए था कि #लॉकडाउन करने से पहले वह मजदूर और देश की आर्थिक स्थिति के बारे में विचार कर लेती या नीति निर्माण पहले ही कर लेती उसके बाद अगर लॉक डाउन लगाया जाता तो उसका भरपूर फायदा मिलता। परंतु यह दोनों ही मुद्दे केंद्र सरकार की नीतियों से नदारद रहे और आज केंद्र सरकार की इस गलती का खामियाजा पूरा देश भूगत रहा हैसरकार जब तक मजदूरों के बारे में विचार करती तब तक जो नुकसान होना था देश को वह हो चुका था।
हुआ क्या ? मजदूरों ने अव्यवस्था के कारण जिस जगह पर वह थे वहां से उन्होंने पैदल ही बिना किसी सुरक्षा के अपने प्रदेशों की तरफ चलना शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ कि वह किसी #संक्रमित लोगों के संपर्क में आए जिसकी वजह से देश के विभिन्न इलाकों में कोरोनावायरस फैल गया जो पहले अमीरों की कोठियों तक था वह अब गरीबों में भी गया इसी बात का तो डर था, क्योंकि गरीबों के पास इतने साधन नहीं होते और ना ही वह इतने जागरूक होते हैं की वह इसे फैलने से रोक सकते।
जो #कोरोनावायरस के मरीज पहले 100 या 200 रहे थे वहीं अब अब लगभग 10,000 आने शुरू हो गए हैं।

सरकार क्या करती रही ?

ऐसे समय में जब मजदूर अकेला ही इधर उधर भटक रहा था तो केंद्र में सत्तासीन सरकार बस तमाशा देखती रही ना तो मजदूरों के लिए ट्रेन बसों का इंतजाम किया और ना ही खाने-पीने का जिससे कई लोग पैदल चलते हुए बीच में ही प्राण त्याग गए या फिर कोई कोरोना वायरस की चपेट में आए हैरानी जनक बातें यह थी कि जब उत्तर प्रदेश  कांग्रेस ने मजदूरों की सहायता करने की कोशिश की तो उनसे कई तरह के सवाल जवाब तलब किए गए और 3 दिन तक यूपी के बॉर्डर पर बसों को रोके रखा गया और तो और कांग्रेस के यूपी प्रदेश #अध्यक्ष को भी जेल में डाला गया परन्तु अगर बात की जाए विपक्षी दलों की सरकारों की तो जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं। वहां पर कोशिश की गई कि मजदूर जनता की ज्यादा से ज्यादा सहायता की जाए उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचा  दिया जाए।
राहत पैकेज

क्या है भारत सरकार का राहत पैकेज ?

राहत पैकेज एक ऐसा झुनझुना दे दिया #भारतीय जनता को केंद्र सरकार द्वारा जिसकी आवाज तो बहुत है। परंतु उस आवाज में मजा नहीं है। इस राहत #पैकेज में उन्होंने उस केंद्रीय मदद का भी जिक्र किया जो पहले ही दी गई थी तो इसमें नया कुछ नहीं था बस लोगों को एक आंकड़े के मायाजाल में उलझाया गया। ज्यादातर  सहायता दी भी गई तो उसमें लोन का इंतजाम किया गया। अब सोचने वाली बात यह है जब उद्योग, कारखाने, दुकाने, कंपनियां बंद है तो ऐसे में  कोई लोन भला लेगा ही क्यों?
 जबकि लोगों को आवश्यकता तो सीधी मदद की थी क्योंकि देश में 11 करोड लोग #बेरोजगार हो गए थे और जिनके लिए पास खाने-पीने के सामान की व्यवस्था की जानी चाहिए थी। मदद के रूप में सीधे #केंद्र सरकार लोगों के खाते में पैसा डाल देती जिससे वह अपना गुजारा करते परंतु हुआ सब इसके विपरीत
अब एक और बात जो हमें एक लोकतांत्रिक देश में सोचनी ही चाहिए -
जैसा कि सभी जानते हैं कि भारत में बंगाल और बिहार में आगे चलकर विधानसभा चुनाव होने हैं। परंतु यह भी सत्य है कि आज देश में जो #कोरोनावायरस की स्थिति है उससे भी देश को लड़ना है तो वर्तमान सत्तासीन दल और केंद्र सरकार को चाहिए था कि वह फिलहाल कोरोनावायरस से लड़ाई लड़ने के लिए हर तरह से प्रयास करें चाहे वह सत्तासीन दल के कार्यकर्ता हो या फिर सरकार खुद। परंतु जैसा कि पिछले कल हुआ केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा #दिल्ली में बैठ कर #बिहार में #वर्चुअल रैलियां की गई तो सोचने वाली बात यह है कि क्या केंद्र सरकार सत्तासीन दल सिर्फ वोट की राजनीति में विश्वास रखता है ?
 क्या सत्तासीन दल लोगों के प्रति देश की जनता के प्रति संवेदनशील नहीं है। अच्छा होता गृह मंत्री जी वर्चुअल रैली द्वारा लोगों को जागरूक करते ना की अपना एजेंडा लेकर लोगों के मध्य में जाते। यह वक्त किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में पडने का नहीं है अपितु वर्तमान में जो देश में बुरी परिस्थितियों खड़ी हुई है चाहे वह कोरोनावायरस, हो या फिर देश की आर्थिक तौर पर बदहाली इन दोनों में सुधार करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए और वैसे भी केंद्रीय गृह मंत्री जी की भागीदारी इस कोरोनावायरस के संकट में संदिग्ध ही रही है वह जनता के बीच में आने और बोलने में भागते रहे हैं। वह कभी खुलकर जनता के सामने कोरोनावायरस को लेकर आए ही नहीं। अगर आए भी तो बस एक तरफी बात की, ना तो कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस की और ना ही लोगों से चर्चा और ऐसे में इस तरह की रैली बहुत ही अजीब है, अटपटी है। अगर यूं ही केंद्र सरकार कोरोना वायरस को लेकर #असंवेदनशील रही तो स्थिति और भी खराब हो सकती है।
और अब सरकार द्वारा सब कुछ राज्य सरकारों पर छोड़ना किसी भी तरह से सही नहीं है। ऐसे में जब केंद्र को एक अभिभावक की भूमिका इस संकट के समय में अदा करनी चाहिए तो वह भाग क्यों रहा है, अपनी जिम्मेदारियों से, जबकि इस समय राज्य सरकारों को केंद्रीय सरकार की तरफ से सहायता और सहयोग की और भी  ज्यादा आवश्यकता है।
और अगर केंद्र इस तरह से वोट और चुनाव की राजनीति में पड़े तो वह देश के भविष्य के लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं है।

हिमाचल प्रदेश भाजपा सरकार

इस महामारी के समय में हिमाचल सरकार की लड़ने की क्षमता भी शक के घेरे में है। जिस तरह से सरकार के ही लोग घोटाले में फंस रहे हैं उससे हिमाचल की जग हंसाई हुई है। आज पूरे देश में हिमाचल का सिर शर्म से झुक गया है। स्वास्थ्य विभाग में घोटाले के कारण प्रदेश भाजपा अध्यक्ष द्वारा भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया जाना भी ऐसा लग रहा है जैसे "कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना" क्योंकि प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्रालय भी प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी के पास है तो कायदे से देखा जाए तो इस्तीफा तो मुख्यमंत्री जी को देना चाहिए था क्योंकि वह सरकार के मुखिया भी हैं और स्वास्थ्य मंत्रालय के मुखिया भी। ऐसे में भाजपा के संगठन के मुखिया का इस्तीफा देना भी असमंजस से भरा है।
जब #शिमला में एक कोरोना पॉजिटिव लड़के की मृत्यु होती है तो उस का रातों-रात अंतिम संस्कार कर दिया गया। वह भी उसके परिवार वालों की गैरमौजूदगी में जो की नियमों से परे और इंसानियत के खिलाफ था। और लाश का अंतिम संस्कार भी #डीजल द्वारा किया गया यह कहां तक उचित है।
संवेदना शून्यता की हद तो तब हुई जब सरकार द्वारा इस मामले में सभी आरोपियों को क्लीन चिट दी गई।
ऐसे में इन परिस्थितियों में जनता और पत्रकारिता विभाग से जुड़े बंधुओं को चाहिए कि वह जागे और सरकार पर सही कार्य करने के लिए #दबाव डालें, नहीं तो भविष्य ना तो सरकार को माफ करेगा, ना जनता को, और ना ही पत्रकारों को