आज के दिन स्वतंत्रता सेनानी और जन नेता बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली। महज़ 22 साल की उम्र क्रांति की शुरुआत करके स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
बिरसा मुंडा का संघर्ष
समाधि व यादगार
मुंडा विद्रोह भारत में अंग्रेजो के खिलाफ सर्वश्रेष्ठ जातीय विद्रोह में से एक था जिसने भारत में अंग्रेजों के प्रति लोगों की मनह स्थिति में परिवर्तन करने में बहुत सहयोग दिया।बिरसा मुंडा को हमेशा एक महान क्रांतिकारी आदिवासी नेता के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। हम ऐसे भारत माता के वीर सपूत को उनकी पुण्यतिथि पर नमन करते हैं।

कौन-थे-विरसा-मुंडा-जिनसे-अंग्रेज़-भी-डरते-थे-विरसा-मुंडा-का-जीवन-और-संघर्ष

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मुंडा जनजाति :यह मुख्य रूप से भारत में #झारखंड के छोटा नागपुर इलाके में एक #जनजाति है। इसके अलावा मुंडा जनजाति के लोग बंगाल, बिहार, उड़ीसा आदि अन्य भारतीय राज्यों में भी निवास करते हैं
आज आदिवासी #अस्मिता के रक्षक बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि है। जिन्होंने आदिवासी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। बिरसा मुंडा अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाले अग्रणी आदिवासी नेता थे। अपने जीवन में उन्होंने #आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिए जो लड़ाई लड़ी उसकी वजह से वह "भगवान बिरसा मुंडा" हो गये। उन्होंने आदिवासी लोगों के लिए जल, जंगल, जमीन की लड़ाई बहुत उग्र तरीके से लड़ी।
विरसा मुंडा जा जन्म
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर1875 को छोटा नागपुर में एक मुंडा परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम सुगमा मुंडा और माता का नाम कर्मी हटू था। साल्गा गांव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वह चाईबासा इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने गए। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिए अपना नेतृत्व प्रदान किया।
बिरसा मुंडा का संघर्ष
1 अक्टूबर 1894 में सभी मुंडाओं को एकत्र कर के लगान को हटाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ्तार किया गया 2 साल की सजा दी गई। इनकी ख्याति बहुत तेजी से फैल रही थी। आदिवासी लोगों ने इनकी पूजा करनी शुरू कर दी थी।1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेजो के बीच संघर्ष जारी रहा। मुंडा के सिपाही तीर कमान से लैस होकर ब्रिटिश लोगों से संघर्ष करते थे।
1898 तांगा नदी के किनारे मुंडाओं का संघर्ष ब्रिटिश सेना से हुआ जिसमें पहले तो अंग्रेज हार गए लेकिन उसके बाद इलाके से बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां हुई।
1900 में डोमबाड़ी की पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ जिसमें बहुत से बच्चे और औरतें मारी गई।
3 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा को भी चक्रधरपुर से गिरफ्तार कर लिया गया। कहा जाता है कि उनकी ही जाति के लोगों ने धन के लालच में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करवाया था। बिरसा मुंडा ने अपनी अंतिम सांसे 9 जून 1900 को रांची कारागार में ली। और यह भी कहा जाता है कि उन्हें धीमा जहर दिया गया था, अंग्रेजों द्वारा।
समाधि व यादगार
बिरसा मुंडा की समाधि कोकर के नजदीक डिस्टलरी पुल के पास है। वहीं उनका स्टैच्यू भी लगाया गया है। रांची में बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमाननक्षेत्र है। उनकी स्मृति में रांची में केंद्रीय बिरसा मुंडा कारागार भी है।
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