वैसे तो कुल्लू मनाली में हर गांव में हर गली में तथा हर घर में अलग-अलग देवता वास करते हैं। यही वजह है कि कुल्लू मनाली को "देवभूमि" भी कहा जाता है। कुल्लू मनाली को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। लोग अपने अच्छे बुरे में भी इन देवताओं को शरीक करते हैं। कुल्लू मनाली के बहुत से गांव में लोग शुभ कार्य करने से पहले पंडित ब्राह्मणों को पूछ कर सीधा अपने ग्राम देवता या फिर गृह देवता को पूछते हैं। यदि गृह देवता या ग्रामदेवता इजाजत दे तो तब उस कार्य को आगे बढ़ाया जाता है अन्यथा उस कार्य को आगे बढ़ाने के बारे में कोई विचार नहीं किया जाता अगर देवता मना करें।
थान देवता का इतिहास ,और ऐतिहासिक  महत्ब
थान देवता का इतिहास ,और ऐतिहासिक  महत्ब
इन देवताओं की कुल्लू मनाली के लोगों के जीवन में बहुत ज्यादा अहमियत होती है। और देवताओं को पूछने के लिए माध्यम गुर (चेले) को बनाया जाता है और ऐसा माना जाता है कि चेला कभी झूठ भी बोले तो उसके लिए देवता जिम्मेदार होता है और उस बात को सच साबित करने के लिए बाध्य होता है।

थान देवता के कितने प्रकार होते है।

थान देवता दो प्रकार के माने जाते हैं। एक वो जो पिंडी स्वरूप पृथ्वी के नीचे से निकले होते हैं। दूसरे जिन्हें खुद  स्थापित किया होता है इस दशा में दूसरी जगह जहां थान देवता वास करते हैं। वहां से फूल के माध्यम से इनकी शक्ति को लाया जाता है और किसी विशेष जगह पर स्थापित किया जाता है। अक्सर इनकी स्थापना किसी पेड़ के नीचे झाड़ी के नीचे कहीं-कहीं घर के उस स्थान में जहां गाय इत्यादि दुधारू पशुओं को रखा जाता है।
शब्द के हिसाब से जाए तो थान को अगर हिंदी में थोड़ा परिवर्तित किया जाए तो यह स्थान बन जाता है। और स्थान को ही पंजाबी में "थां" कहा जाता है। शब्द के हिसाब से थान देवता का अर्थ यही निकलता है कि किसी स्थान विशेष का देवता। और स्थानीय लोग इसलिए इन्हें क्षेत्रपाल भी कहते हैं। कुल्लू मनाली के अधिकतर गांव में थान देवता को ग्राम देवता के बाद पूजा जाता है और थान देवता को ग्राम देवता का सहायक माना जाता है। थान देवता उस गांव उस क्षेत्र विशेष की रक्षा का कार्यभार संभालते हैं। इन्हें समय-समय पर बलि देकर या फिर अन्य चीजों का भोग लगाकर प्रसन्न किया जाता है।
गांव में मुख्य देवता का  मंदिर बनाना हो या कभी मुख्य देता शाही स्नान के लिए जाए तो मंदिर निर्माण के बाद शाही स्नान के उपरांत भी थान देवता को बली इत्यादि देकर खुश किया जाता है। अगर इन्हें मनाया नहीं गया तो यह क्रोधित भी बहुत जल्दी होते हैं। गांव में काफी सारे लोग जब अपनी फसल की कटाई करते हैं तो उसको भी प्रसाद स्वरूप पहले इन्हें चढ़ाया जाता है।
 ऐसे स्थान या ऐसे घर जहां पर थान देवता वास करते हैं वहां पर दुधारू पशुओं को अक्सर देखा गया है कि वह ज्यादा दूध देते हैं और ऐसी जगह पर अगर आप पशुओं को पालते हैं तो पशुओं की अकाल मृत्यु नहीं होती और दूध, दही, घी इत्यादि की भी कमी नहीं रहती। और गांव में एक नियम होता है कि जब तक की पहला दूध, घी उस गांव या स्थल के थान देवता को नहीं चढ़ाया जाता तब  तक उस दूध, घी, दहीं को लोग खुद उपयोग में नहीं लाते। पहले यह गांव में नियम होता है कि दूध घी को पहले थान देवता की पिंडी पर चढ़ाया जाता है, या दुध, घी के पकवान बना कर भोग लगाकर। उसके बाद उसे प्रसाद के रूप में खुद ग्रहण करते हैं, और उसके बाद ही लोग आगे नियमित रूप से दूध, दही, घी का उपयोग शुरू करते हैं।

थान देवता को पाताल का देवता भी माना जाता है।

थान देवता को अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे पाताल देवता, नांढा देवता इत्यादि। थान देवता को पाताल का देवता भी माना जाता है।अक्सर यह देखा जाता है कि जब इनके गुर (चेले) के शरीर में जब देवता प्रवेश करते है तो वह बोलता नहीं अपितु गूंगे जैसा व्यवहार करता है आपदा बहुत बड़ी हो तो तभी वह बोलता है बह भी बहुत कम अन्यथा शब्दों का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करता। इशारों से ही लोगों को उनकी विपदाओ का हल बताया जाता है। थान देवता को उग्र देवता माना जाता है। स्थान देवता के रथ नहीं होते मनाली में सिर्फ दो ही जगह इनका रथ है शिम (डोभी) जहां बहुत पहले देवता के रथ का निर्माण हुआ है। अब कुछ साल पहले मनाली के प्रीणी में भी थान देवता के रथ का निर्माण हुआ है परंतु कुल्लू मनाली में  यह कहावत है कि जैसी जैसी जगह और वैसे वैसे देवताओं की मान्यताएं  होती हैं और एक ही देवता के नियम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग भी होते हैं। थान देवता की एक बात सभी लोग मानते हैं कि यह यहां के सबसे पुरातन भूमि देवता हैं और जैसे दूसरे देवता अलग-अलग जगहों से आए हैं थान देवता यही के मुल देवताओं में से माने जाते हैं क्योंकि शैव वैष्णव मत की वजह से जिन देवी देवताओं को आज कुल्लू मनाली में माना जाता है। सैकड़ों साल पहले कुल्लू मनाली में देखने में नहीं आते थे। ऐसे में एक बात तो माननी ही पड़ेगी की थान देवता कुल्लू मनाली के मुल पुरातन देवताओं में से एक हैं।