मनाली में कई देवी स्थल हैं। जो अपना-अपना महत्व रखते हैं। हर एक देवस्थल की अपनी अपनी विशेषता होती है। मनाली में हर एक गांव में एक मुख्य देवता होता है। जिसे पूरा गांव पूजता है।  मनाली की देवियों में से एक हैं मां त्रिपुरा सुंदरी जिन का मंदिर नगर गांव में है जोकि मनाली से लगभग 25 किलोमीटर लेफ्ट बैंक की तरफ है। यह एक बहुत ही पुराना गांव है।  किसी समय यह नगर गांव कुल्लू के राजाओं की राजधानी हुआ करता था। रियासत काल में नगर गांव का अपना ही वैभव हुआ करता था आज भी इसकी प्रमाणिकता गांव में देखने को मिलती है आज भी यहां पर पुरातन अवशेष मिलते रहते हैं
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माता त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर, नगर कैसल से थोड़ा आगे रोरिक आर्ट गैलरी से थोड़ा पीछे है। माता का मंदिर रूमसु के लिए जो सड़क जाती है, उसके नीचे वाली तरफ को नगर में है वैसे नगर गांव पर्यटकों से भी भरा रहता है खासकर यहां रोरिक आर्ट गैलरी होने के कारण रूस के पर्यटक ज्यादा देखे जाते हैं।
माता त्रिपुरा सुंदरी का ही एक रूप कैलाशनी भी नगर गांव के मशाडा में है। माता त्रिपुरा सुंदरी कुल्लू राजघराने की इष्ट देवियों में से एक हैं। यहां पर देवता शेषनाग का मंदिर भी है जिन्हें माता का सहायक या दूत भी माना जाता है। माता त्रिपुरा सुंदरी नगर, मढी, घरोपा मशाडा और झांसू  आदि क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। माता से अगर कुछ पुछना हो तो माता और लोगों के बीच में माध्यम गुर (चेला) होता है
मंदिर में सुबह और शाम को पूजा होती है जिसमें घंटी और धड़छ का उपयोग होता है। धूप के रूप में एक स्थानीय धूप बेठर का इस्तेमाल होता है। माता का रथ फेटा है यह एक प्रकार होता है रथ बनाने का। रथ के  शिखर पर मध्य में सोने का तथा दोनों और चांदी के छत्र लगाए जाते हैं सभी आभूषण चांदी के बनाए हुए हैं माता के रखने 12 मोहरे लगे हुए हैं इनमें तीन मोहरे शेर के हैं और सभी मोरे चांदी के हैं तथा।
नगर गांव का शाड़ी मेला भी बहुत प्रसिद्ध है। यह कुल्लू मनाली के पुरातन मेलों में से एक है। स्थानीय भाषा में इसे शाड़ी जाच बोला जाता है।
और माता के मंदिर का प्रबंध अलग-अलग लोगों द्वारा देखा जाता है इनमें मुख्य हैं कारदार, गुर (चेला) पुजारी, भंडारी, जठाली, खोलीदार, जठेरा तथा बजंतरी  इत्यादि।
लोक कथा - कुल्लू मनाली में जितने भी मंदिर है देवस्थल है वह किसी ना किसी लोककथा से जरूर जुड़े होते हैं। वैसा ही इस मंदिर से संबंधित भी है। पुरातन समय में वर्तमान मंदिर स्थान के आसपास का क्षेत्र चरागाह था जिसमें लोग अपने पशुओं को चराने के लिए लाया करते। एक बार किसी व्यक्ति की गाय ने चरने के बाद घर आकर शाम को दूध देना बंद कर दिया। जब कुछ दिन ऐसा ही चलता रहा तो 1 दिन मालिक ने गाय का पीछा किया तब उसने देखा कि शाम को घर लौटने से पूर्व गाय एक बड़ी चट्टान पर गई जहां उसके थनों से खुद खुद दूध की धार निकलने लगी। आश्चर्यचकित होकर व्यक्ति इस दृश्य को देख ही रहा था कि चट्टान से एक कन्या प्रकट हुई, उसने बताया कि मैं त्रिपुरा सुंदरी हूं और यही स्थापित होना चाहती हूं। गाय के स्वामी ने यह बात गांव वासियों को बताई और लोगों ने देव आराधना वहां पर शुरू कर दी, और वहां मंदिर का निर्माण भी किया। यह मंदिर एक अति प्राचीन मंदिर है यह कुछ कुछ माता हडिंबा के मंदिर जैसा प्रतीत होता है। यह एक अत्यंत शांत और जागृत जगह  प्रतीत है। कभी समय लगे तो यहां जरूर जाइए प्रकृति का आनंद तो मिलेगा ही माता के यहां होने की अनुभूति भी प्राप्त होगी।