गुरु पूर्णिमा को क्यों मनाया जाता है Why Guru Purnima is celebrated जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु के लिए समर्पित है। पूर्णिमा शब्द किसी भी कार्य भाव की पूर्णता को प्रदर्शित करता है, जिसमें किसी भी तरह की अपूर्णता ना हो जिसमें पूरी तरह से सभी गुणों का और भावों का ज्ञान का समावेश हो
गुरु-पूर्णिमा-को-क्यों-मनाया-जाता-है


संस्कृत का एक श्लोक है गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा गुरुर साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
इस  श्लोक के अनुसार गुरु को ब्रह्मा विष्णु महेश का रूप माना गया है। और कहा है कि ऐसे पूर्णब्रह्म को मैं प्रणाम करता हूं
आदि अनादि काल से गुरु शिष्य परंपरा गुरु शिष्य का जो एक संबंध होता है। वह निरंतर चला रहा है।
गुरु बिन ज्ञान ना उपजे
गुरु बिन मिले ना मोक्ष
गुरु बिन लखै ना सत्य को
गुरु बिन मिटे ना दोष।
अर्थात बिना गुरु के ज्ञान मिलना असंभव है। मनुष्य तब तक अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ माया रुपी सांसारिक बंधनों में जकड़ा रहता है जब तक की गुरु की प्राप्ति नहीं हो जाती।
जो अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर जाता है वह गुरु ही तो है। बिना गुरु के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान भी नहीं होता तो ऐसे में मोक्ष कैसे प्राप्त होगा।
भारत विविधताओं से भरा देश है। जिसमें अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए। अलग-अलग त्योहार और पर्व हैं। हमारे देश में आषाढ़ शुक्ल की पूर्णिमा को बड़े ही उत्साह के साथ गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है। वैसे तो गुरुओं का विशाल और समृद्ध इतिहास रहा है भारत में। गुरु पूर्णिमा महाभारत के रचयिता कृष्ण देव पायन का जन्मदिन भी है। ऋषि व्यास संस्कृत के बहुत बड़े जानकार थे। व्यास ने ही चारों वेदों की रचना की थी। इन्हें वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है। इनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को वेद व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु और शिष्य के संबंधों को बताने के लिए आगे  वाली पीढ़ियों  के लिए यह पर्व आदर्श है। भारत में गुरु को भगवान तुल्य माना जाता है या दूसरे शब्दों में कहें तो भगवान ही माना जाता है। गुरु ही व्यक्ति के जीवन से अंधकार या यू कहे अज्ञानता को मिटाते हैं।
गुरु पूर्णिमा पूरे देश में बड़े ही धूमधाम के साथ बनाई जाती है। इस दिन पूरे भारत में लगभग सभी लोग अपने गुरु के प्रति विशेष आदर और सम्मान व्यक्त करते हैं काफी सारे लोग उन्हें सम्मानित भी करते हैं। लोग अपने गुरुओं को कई तरह की भेंट भी अर्पित करते हैं।
महर्षि वेदव्यास को समस्त इंसानों का गुरु माना गया है। और इनका जन्म लगभग 3000 ईसा पूर्व माना जाता है
यह पर्व आदर्श है। गुरु पूर्णिमा को लोग श्रद्धा भाव से बनाते हैं। श्रद्धा होती है एक समर्पण का, एक ग्रहण करने का, और त्याग का, कम से कम 1 दिन तो ऐसा हो जिस दिन हम अपने गुरु को अपनी निष्ठा और समर्पण दिखा सकें।
यह गुरु ही तो है जो हमें ईश्वर का और उचित अनुचित का भेद बताता है। ईश्वर से साक्षात्कार भी गुरु द्वारा ही होता है।
जो हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाएं, असत्य से सत्य की तरफ ले जाएं वही तो गुरु है।
और गुरु के प्रति भावना व्यक्त करने के लिए पूर्णिमा के दिन से अच्छा और कौन सा दिन हो सकता है
गुरु और पूर्णत्व एक-दूसरे के पर्याय होते हैं। प्रकाश चंद्रमा पूर्णिमा की रात को सर्व कलाओं से परिपूर्ण हो जाता है। इस प्रकार चंद्रमा समान भाव से अपनी शीतलता सभी को प्रदान करता है। उसी प्रकार संपूर्ण ज्ञान से ओतप्रोत गुरु अपने सभी शिष्यों को एक समान ज्ञान प्रदान करता है।
आषाढ़ शिष्य है तो पूर्णिमा गुरु है आषाढ़ जहां बादलों से ढका रहता है वही चंद्रमा अपनी रोशनी से उसे राह दिखाता है।

गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महिने तक परिव्राजक साधु-संत  एक ही जगह पर रह कर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। यह 4 महीने मौसम के हिसाब से भी अच्छे होते हैं। ना तो अत्यधिक गर्म होते हैं और ना ही अत्यधिक ठंडे
बौद्ध धर्म में भी गुरु पूर्णिमा की बहुत मान्यता है हर एक बौद्ध मठ में गुरु पूर्णिमा वाले दिन भगवान बुध की पूजा अर्चना की जाती है। और बौद्ध मठों में बुद्ध पूर्णिमा  बाले दिन बहुत ज्यादा लोगों का बुद्ध भगवान के दर्शनार्थ  तांता लगा रहता है।