कविता - धारा के विपरीत चलना है समन्दर के साथ लड़ना है : कबिता के माध्यम से मैंने पाठको को संघर्ष के बिषय में बताने की कोशिश की है। संघर्ष जिन्दगी का एक हिस्सा है। जिसका हमें सामना करना चाहिए है। जिन्दगी में संघर्ष जितना कठिन होगा। परिणाम उतना ही अच्छा होता है।संघर्ष से ही मनुष्य की जिन्दगी में निखार आता है।
कविता - धारा के विपरीत चलना है समन्दर के साथ लड़ना है
कुछ भी तो
हो जाने दो
पर जीवन का संघर्ष
तो जारी रखना है
हार भी होगी कहीं तो
उस
हार का स्वाद चखना है
साक्षी रहेगा
मेरा तन
धारा के विपरीत चलना है और समंदर के साथ लड़ना है
कईयों ने तोड़ा है
कईयों ने छोड़ा है
मंजिल तक पहुंचने के लिए जरूरी
रास्ते का रोड़ा है
साक्षी है मेरा भूतकाल
साक्षी है मेरा वर्तमान
साक्षी है मेरा भविष्य
धारा के विपरीत चलना है
समंदर के साथ लड़ना है
ठोकरें लगती है
तो लगती रहें
चाहे नदी का धारा प्रवाह
मुझे कहीं पर भी गिरा दे
कहीं
किसी पत्थर में ही अटका दे
साक्षी है
मेरा मन
धारा के विपरीत चलना है
समंदर के साथ लड़ना है
क्या खोना है
तो क्या पाना है
अकेले आए हैं
अकेले ही जाना है
बना सकूं अपनी पहचान
मैंने यह ठाना है
जमाना कहे कुछ भी
जमाने का काम कहना है
साक्षी रहेगा
भूमि का कण कण
धारा के विपरीत चलना है
समंदर के साथ लड़ना है
चाहे छू ना सकूं आसमां को
पर
प्रयत्न करने से किसने रोका है
कठिनाई तो बस एक धोखा है
जिससे मुझे मिलता है
खुद को निखारने का मौका है
साक्षी रहेगा
मेरे जीवन का हर एक पल
धारा के विपरीत चलना है
समंदर के साथ लड़ना है
कर्ज चुकाना मातृभूमि का है
माता-पिता का है
और
हर उस शख्स का
जिसने मेरे बुरे वक्त में
मेरा साथ दिया है
कहूं या ना कहूं
मैंने
सबको हर वक्त याद किया है
साक्षी रहेगा
जमाना
धारा के विपरीत चलना है
समंदर के साथ लड़ना है
छोड़ दूं युद्ध का मैदान
मेरी यह फितरत कहां है
जिस दिन उठेगा जनाजा
मेरा
हर आंख को
छलकाना है
इसलिए अभी विष को भी
अमृत समझ के पी जाना है
साक्षी रहेगी
मातृभूमि
धारा के विपरीत चलना है
समंदर के साथ लड़ना है
निष्कर्ष : उम्मीद है की आपको यह कबिता पसन्द आयी होगी। अगर आपको यह कबिता पसन्द आयी है तो कृप्या अपने दोस्तों के साथ शेयर करे।
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